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कविता

दूसरा प्यार

आलोक पराड़कर


दूसरा प्यार पहले प्यार के वर्षो बाद हुआ था
उसमें पहले प्यार जैसी कोमलता नहीं थी
कुछ भी कर गुजर जाने का उतावलापना नहीं था
और पूरी दुनिया को ठेंगे पर रख देने की हिम्मत तो बिल्कुल भी नहीं थी
दुनिया तो उसमें अपने सारे रंगों के साथ शामिल थी
और उसमें शामिल थीं उम्र के साथ मिली तमाम चालाकियाँ
शरीर की तमाम जरूरतें तो थीं हीं उसमें
उस प्यार में इतनी खाली जगहें थीं
कि वहाँ बड़े आराम से रखी जा सकती थीं
साथी की बेवफाई
दूसरा प्यार अधिक परिपक्व अधिक टिकाऊ था
वह पहले प्यार की तरह निस्पृह नहीं था
पहले प्यार की तरह असफल भी नहीं था वह
दूसरा प्यार प्यार नहीं था

 


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